प्रिय पाठकों, इस पोस्ट में हिंदी साहित्य के स्रोतों, साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों, हिंदी साहित्य के काल विभाजन, वर्गीकरण एवं नामकरण से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदुओं के क्रमवार समाहित किया गया है। यदि आपको हमारे द्वारा किया गया यह प्रयास अच्छा लगा है, तो इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ अवश्य साझा करें। आप अपने सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर सकते है। जिससे हम हिंदी साहित्य के आगामी ब्लॉग को और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें।
हिंदी साहित्य के प्रथम इतिहास लेखन का श्रेय फ्रेंच भाषा के विद्वान गार्सा द तासी को जाता है। इनका ग्रंथ “इस्तवार द ला लितरेत्युर ऐंदुई ए ऐन्दुस्तानी” नाम से 1839 में प्रथम भाग एवं 1847 में द्वितीय भाग प्रकाशित हुआ।
हिन्दी साहित्य के अब तक लिखे गए इतिहास में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखे गए ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ को सबसे प्रामाणिक, सुव्यवस्थित व कालक्रमानुसार लिखा इतिहास माना जाता है। आचार्य शुक्ल जी ने इसे “हिन्दी शब्दसागर की भूमिका” के रूप में लिखा था जिसे बाद में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा एक स्वतंत्र पुस्तक के रूप में 1929 ई० में “हिंदी साहित्य का इतिहास” नाम से प्रकाशित कराया गया।
“विश्व साहित्य में साहित्य इतिहास लेखन का सर्वप्रथम प्रयास फ्रांसीसी विद्वान ‘हिप्पोली एडॉल्फ तेन‘ ने किया।
‘हिप्पोली एडॉल्फ तेन‘ द्वारा लिखित साहित्य इतिहास ‘विधेयवादी पद्धति’ पर आधारित है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी इसी पद्धति का अनुकरण किया है।
‘हिप्पोली एडॉल्फ तेन‘ द्वारा लिखित इतिहास अंग्रेजी का है।
Table of Contents
हिंदी साहित्य इतिहास लेखन के स्रोत
इतिहास सदैव साक्ष्य की खोज करता है, जो प्रमाणित साक्ष्य प्राप्त होने पर ही आगे बढ़ते हैं। यही उसकी आधार सामग्री होती है। डॉ. रामकुमार वर्मा ने अपने शोध प्रबंध ‘हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास’ (1938) में हिंदी साहित्य के स्रोतों के रूप में अंतः साक्ष्य तथा बाह्य साक्ष्य का उल्लेख किया है।
अंत: साक्ष्य के अंतर्गत उपलब्ध सामग्री में आधारभूत कृतियों एवं ग्रंथों, कवि एवं लेखकों की फुटकर प्रकाशित एवं अप्रकाशित रचनाएं होती है। बाह्य साक्ष्य के अंतर्गत शिलालेख, वंशावलियां, ताम्रपत्रावली, जनश्रुतियां, ख्यात एवं कहावतें जैसी सामग्री होती हैं। जो तत्कालीन युग को परिलक्षित करती हैं। हिंदी साहित्य में भी अंत:साक्ष्य और बाह्य साक्ष्य के माध्यम से इतिहास लेखन प्रारंभ हुआ।
हिंदी साहित्य इतिहास लेखन में अंत: साक्ष्य के अंतर्गत 25 महत्वपूर्ण साक्ष्यों का उल्लेख नीचे किया किया गया है, जो इस प्रकार है :-
1. चौरासी वैष्णवन की वार्ता व दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता – पंडित गोकुलनाथ ( सन् 1568 ) • पंडित गोकुलनाथ भट्ट गोस्वामी विट्ठलनाथ जी के सात पुत्रों में से चौथे पुत्र थे। • ये दोनों ग्रंथ वार्ता साहित्य के अंतर्गत आते हैं जो बृजभाषा के प्राचीन गद्य का नमूना है। • चौरासी वैष्णवन की वार्ता में महाप्रभु वल्लभाचार्य के 84 शिष्यों का जीवनवृत्त मिलता हैं। • दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता में गोस्वामी विट्ठलनाथ जी के 252 शिष्यों का जीवन परिचय मिलता है। |
2. भक्तमाल (सन् 1585 ई.) – नाभादास “अग्रदेव आज्ञा दई भक्तन को यश गाऊं, भवसागर के तरन को नाहिन और उपाऊ॥” • भक्तमाल में नाभादास ने दो सौ (200) भक्त कवियों का जीवन परिचय दिया है। • यह भक्तिकालीन भक्तों के सम्बन्ध में प्रामाणिक रचना मानी जाती है। • इसके पूर्वार्द्ध में कलयुग से पहले के भक्तों का परिचय है, तो उत्तरार्द्ध में मध्यकालीन भक्तों और संतों का संक्षिप्त परिचय है। • नाभादास, अग्रदास जी के शिष्य थे। • भक्तमाल की प्रथम टीका “प्रियादास” ने “भक्ति रस बोधिनी” नाम से लिखी है। |
3. गुरु ग्रंथ साहब (सन् – 1604 ई.) – गुरु अर्जुनदेव • इस ग्रंथ में हिन्दी के 15 सन्तों / भक्त कवियों के पदों का संकलन हैं। जो निम्न है – 1. शेख फरीद 2. जयदेव 3. नामदेव 4. त्रिलोचन 5. संत रविदास (रैदास) 6. संत धन्ना 7. संत पीपा 8. संत सैना 9. संत सदना 10. संत भीखन 11. संत वेणि 12. रामानन्द 13. परमानंद 14. कबीर 15. सूरदास • कबीर के सर्वाधिक “सबद”- 224 इस ग्रंथ में संकलित है |
4. मूल गोसाईं चरित (सन् – 1630 ई.) – बाबा बेनीमाधव दास • तुलसी के जीवन के साक्ष्य इस ग्रंथ से प्राप्त होते हैं। • अमृतलाल नागर रचित उपन्यास – “मानस का हंस” का मूल आधार। |
5. भक्त नामावली (सन् – 1636 ई.) – ध्रुवदास संपादन – राधाकृष्ण दास • 124 भक्त और 114 दोहों में वर्णन है। • इस रचना के संबंध में :- “रसिक भक्त भूतल घने, लघुमति क्यों कहि जाहि। बुधि प्रमान गोये कछु, जो आए उर माहि॥” – [ ध्रुवदास ] • काशी नागरी प्रचारिणी सभा के प्रयासों से ‘इंडियन प्रेस – प्रयाग‘ ने इस ग्रन्थ का प्रकाशन सन् 1928 में किया। |
6. कविमाला ( 1665 ई. ) – तुलसी ( तुलसीदास नहीं ) |
7. कालिदास हजारा ( 1698 ई. ) – कालिदास त्रिवेदी • 212 कवियों के 1000 (एक हजार) पद्य संकलित • शिवसिंह सेंगर ने कवियों के काल निर्णय एवं उदाहरण इसी ग्रंथ से लिए हैं। “कवियों के काल आदि के निर्णय में यह ग्रंथ बड़ा उपयोगी हैं।” – आ. रामचंद्र शुक्ल |
8. काव्य निर्णय (1685 ई.) – कवि भिखारीदास |
9. सत्कवि गिराविलास (1746 ई.) – बलदेव बघेलखण्डी – (17 कवियों का परिचय) |
10. कवि नामावली (1753 ई.) – कवि सूदन |
11. विद्वन्मोद तरंगिणी (1817 ई.) – सुब्बा सिंह उर्फ “श्रीधर” |
12. राग सागरोद्भव और राग कल्पद्रुम (1843 ई.) – कृष्णानंद व्यास देव (200 कृष्ण भक्त कवि) |
13. श्रृंगार संग्रह (1648) – सरदार कवि |
14. रस चंद्रोदय (1563 ई.) – ठाकुर प्रसाद |
15. कवित रत्नाकर (1676 ई.) – मातादीन मिश्र |
16. दिग्विजय भूषण (1868 ई.) – गोकुलप्रसाद “ब्रज” |
17. सुंदरी तिलक (1869 ई.) – भारतेन्दु हरिश्चंद्र |
18. भाषा काव्य संग्रह (1873 ई.) – महेशदत्त “शुक्ल” |
19. शिवसिंह सरोज (1883 ई.) – शिवसिंह सेंगर |
20. विचित्रोपदेश (1887 ई.) – नकछेदी तिवारी |
21. कवि रत्नमाला (1911 ई.) – देवी प्रसाद मुंसिफ |
22. हफिजुल्ला खाँ का हजारा (1915 ई.) – हफिजुल्ला खाँ |
23. संत वाणी संग्रह तथा अन्य संतों की बानी (1915 ई.) – अधम |
24. सूक्ति सरोवर (1922 ई.) – लाला भगवानदीन |
25. सलेक्शंस ऑव हिन्दी लिटरेचर’ (1921-1925) – लाला सीताराम |
- एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान – कर्नल जेम्स टॉड
- काशी नागरी प्रचारिणी सभा की रिपोर्ट :- बाबू श्याम सुंदर दास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, डॉ. हीरालाल और मिश्रबंधु ( गणेशबिहारी मिश्र, श्यामबिहारी मिश्र और शुकदेव बिहारी मिश्र )
- राजस्थान में हिन्दी हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज – मोतीलाल मेनारिया
- गोरखनाथ एण्ड कनफटा योगीज – जॉर्ज वेस्टर्न ब्रिग्स
हिन्दी साहित्येतिहास लेखन की पद्धतियां
हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की जो पद्धतियां प्रचलित है, उनका विवरण निम्नवत् है –
1. वर्णानुक्रम पद्धति :-
• इस पद्धति में इतिहास लेखक कवियों का परिचय वर्णमाला के क्रम के आधार पर देते है।
• इतिहास लेखन की सर्वाधिक अविकसित पद्धति है।
• इस पद्धति का प्रयोग गार्सा द-तासी रचित ग्रंथ “इस्तवार द लॉ लितरेन्युर ऐन्दुई ए ऐन्दुस्तानी” तथा शिवसिंह सेंगर रचित ग्रंथ – “शिवसिंह सरोज” में हुआ है।
वर्णानुक्रम पद्धति में दोष :-
• इस पद्धति में लिखे इतिहास ग्रंथ “साहित्य कोष” के समान लगते हैं।
• यह पद्धति सर्वाधिक अनुपयोगी एवं दोषपूर्ण हैं।
2. कालानुक्रमी पद्धति :-
इस पद्धति में कवियों और लेखकों का वर्गीकरण ऐतिहासिक तिथि क्रम के आधार पर किया जाता है।
→ इस पद्धति पर रचित ग्रंथ :-
• “द मॉर्डन वर्णाक्यूलर लिट्रेचर ऑफ हिन्दुस्तान – जॉर्ज ग्रियर्सन
• मिश्रबंधु विनोद – मिश्र बंधु
दोष :- युगीन परिस्थितियाँ तथा कवियों की प्रवृत्तियाँ इस पद्धति में स्थान नहीं पा सकी।
3. विधेयवादी पद्धति :-
• इस पद्धति के जनक ‘हिप्पोली एडॉल्फ तेन‘ है।
• इस पद्धति में साहित्य सम्बन्धी ऑंकड़े एकत्र करने के साथ-साथ तदयुगीन वातावरण, परिस्थितियों तथा जातीय परम्पराओं का विश्लेषण किया जाता है।
→ इस पद्धति पर रचित ग्रंथ : हिन्दी साहित्य का इतिहास – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
डॉ. नलिन विलोचन शर्मा – “हिन्दी के विधेयवादी साहित्य इतिहास के आदम प्रवर्तक शुक्ल जी नहीं, ग्रियर्सन है।”
Note – “हिन्दी साहित्य का इतिहास दर्शन” – नलिन विलोचन शर्मा
4. वैज्ञानिक पद्धति :-
इस पद्धति में इतिहासकार निरपेक्ष रहकर तथ्यों का संकलन करता है और उन्हें क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करता है। इस पद्धति में क्रमबद्धता एवं तर्क पुष्टता अनिवार्य होती है।
→ इस पद्धति पर रचित ग्रंथ :-
• हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास (भाग 1 – 1964 भाग 2 – 1965) → डॉ. गणपतिचंद्र गुप्त
5. समाज शास्त्रीय पद्धति :-
यह पद्धति मार्क्सवादी द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर आधारित है। इस पद्धति में कवियों और लेखकों का मूल्यांकन जनहित की कसौटी पर किया जाता है।
• इस प्रणाली का प्रयोग डॉ. रामविलास शर्मा ने किया है।
हिंदी के प्रमुख इतिहासकार और उनके द्वारा किया गया काल विभाजन
हिन्दी साहित्य का वर्गीकरण, काल विभाजन और नामकरण को लेकर विद्वानों के अलग-अलग मत रहे हैं। काल विभाजन के सम्बन्ध में सबसे पहला वर्गीकरण ‘जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन‘ का है, जो हिन्दी साहित्यकारों ने अस्वीकार कर दिया। इनके अतिरिक्त मिश्रबंधुओं, महेशदत्त शुक्ल, शिवसिंह सेंगर, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामकुमार वर्मा, गणपति चंद्र गुप्त और डॉ. नगेन्द्र ने भी हिन्दी साहित्य का वर्गीकरण और नामकरण किया है। इनमें सबसे प्रसिद्ध आचार्य रामचंद्र शुक्ल और हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी साहित्य काल विभाजन विभाजन है।
1. गार्सा-द-तासी (फ्रैंच विद्वान)
साहित्यिक ग्रंथ – “इस्तवार द ला लितरेत्युर ऐंदुई ए ऐन्दुस्तानी”
→ प्रथम संस्करण = I भाग – 1839 ई. व भाग II – 1847 ई.
→ द्वितीय संस्करण I व II भाग – 1870 ई. व भाग III – 1871 ई.
• इस ग्रंथ का प्रकाशन “द आरियंटल ट्रांसलेशन कम्पनी (ग्रेट ब्रिटेन व आयरलैण्ड) द्वारा किया गया।
• फ्रेंच भाषा में लिखा गया हिन्दी का प्रथम साहित्य इतिहास ग्रंथ।
• इस ग्रंथ में 738 कवि शामिल किए गए जिनमें से 22 कवि हिन्दी के, शेष उर्दू के।
• आ. रामचंद्र शुक्ल ने इस ग्रंथ को ‘वृत्त संग्रह‘ कहा है।
• इस ग्रंथ में काल विभाजन का कोई प्रयास नहीं किया गया।
• इस ग्रंथ में हिन्दी का प्रथम कवि ‘अंगद‘ तथा अंतिम कवि ‘हेमंत पंत‘ है।
• इस ग्रंथ का हिंदी अनुवाद – ‘डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय‘ ने ‘हिन्दुई साहित्य का इतिहास‘ नाम से 1952 में किया। जिसका प्रकाशन हिन्दुस्तानी अकेडमी इलाहाबाद ने किया। इस ग्रंथ में 358 कवि शामिल किये गए जिनमें से 220 कवि हिन्दी के थे।
- “कवियों को कालक्रम के स्थान पर अंग्रेजी वर्णक्रम में प्रस्तुत करना, काल विभाजन, युगीन प्रवृत्तियों का अभाव और हिन्दी उर्दू के कवियों को घुला मिला देना त्रुटिपूर्ण है। अनेक न्यूनताओ के होते हुए भी इतिहास लेखन की परम्परा के प्रवर्तक के रूप में गार्सा-द-तासी को गौरव प्राप्त है।” – डॉ. नगेन्द्र
2. करीमुद्दीन
साहित्यिक ग्रंथ – “तजकिरा-ई-शुअरा-ई-हिंदी” – 1848 में प्रकाशन
• इस ग्रंथ को तासी के ग्रंथ का उर्दू में अनुवाद माना जाता है।
• इस ग्रंथ में एक हजार चार (1004) कवि शामिल किए गए जिनमें 62 कवि हिंदी के है।
• तासी ने अपने ग्रंथ के द्वितीय संस्करण में इस ग्रंथ का सहारा लिया।
• कवियों के जन्म-मरण के संवत्, उनके वैयक्तिक जीवन तथा काव्य संग्रहों के सम्बन्ध में निरूपण करने में इस ग्रंथ को आंशिक सफलता मिली।
3. महेशदत्त शुक्ल
साहित्यिक ग्रंथ – “भाषा काव्य संग्रह” (1873 ई.)
• यह ग्रंथ कवियों का जीवन परिचय तो प्रस्तुत करता है किन्तु एक व्यवस्थित साहित्य इतिहास की तरह नहीं लगता।
4. शिवसिंह सेंगर
साहित्यिक ग्रंथ – शिवसिंह सरोज- (1883 ई.)
• इस ग्रंथ का प्रथम प्रकाशन 1878 ई. में हो चुका था किंतु वह अव्यवस्थित तथा अपूर्ण होने के कारण इसका पुन: प्रकाशन द्वितीय संस्करण के रूप में 1883 ई. में किया गया।
• हिन्दी में लिखा गया हिंदी का प्रथम इतिहास ग्रंथ।
• इस ग्रंथ को हिन्दी साहित्य के इतिहास का ‘प्रस्थान बिंदु‘ कहा जाता है।
• इस ग्रंथ के लेखन में शिवसिंह सेंगर ने सर्वाधिक सामग्री का उपयोग ‘कालिदास हजारा‘ ग्रंथ से किया है।
• इस ग्रंथ में भी काल विभाजन का भी कोई प्रयास नहीं किया गया।
• तासी ने जहां अपने ग्रंथ में अंग्रेजी वर्णक्रम का प्रयोग किया वहीं शिवसिंह सेंगर ने कवियों का विवरण हिन्दी वर्णक्रम में किया। (अकारादि क्रम से )
• इस ग्रंथ में 1003 कवियों का वर्णन मिलता है। (सभी हिंदी के)
• इस ग्रंथ का प्रकाशन ‘नवलकिशोर प्रेस लखनऊ’ ने किया।
• आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस ग्रंथ को भी ‘वृत्तसंग्रह’ कहा है।
• शिवसिंह सरोज में हिन्दी की जड़ तक पहुँचने के लिए पुष्य / पुंड को प्रथम कवि रूप में वर्णित किया गया है।
• कवियों को शताब्दी के अनुसार अलग-अलग करने का प्रयास किया गया।
• 687 कवियों की तिथियों का उल्लेख इस रचना में मिलता है।
5. जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन
साहित्यिक ग्रंथ – “द मॉर्डन वर्नाक्यूलर लिट्रेचर ऑफ हिन्दुस्तान (1888)
• “द रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल“ की एक पत्रिका के विशेषांक के रूप में इस ग्रंथ का प्रथम प्रकाशन 1888 ई. में हुआ था।
• 1889 में स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में पुन: प्रकाशन।
• ग्रियर्सन ने अपने इतिहास लेखन में सर्वाधिक सामग्री शिवसिंह सरोज से ली।
• द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान ग्रंथ में 952 कवियों का परिचय मिलता है जिसमें से 886 कवि शिवसिंह सरोज से व 66 कवि नए लिए गए। ( सभी कवि हिंदी के हैं )
• ग्रियर्सन ने प्रथम बार साहित्य इतिहास लेखन में काल विभाजन का प्रयास किया।
• ग्रियर्सन ने अपने ग्रंथ को 12 अध्यायों में विभक्त किया है। जो इस प्रकार है –
क्र.सं. | अध्याय का नाम |
1 | चारणकाल ( 700-1300 ) |
2 | पन्द्रहवी शताब्दी का धार्मिक पुनर्जागरण |
3 | जायसी की प्रेम कविता |
4 | ब्रज का कृष्ण संप्रदाय |
5 | मुगल दरबार |
6 | तुलसीदास |
7 | रीतिकाव्य |
8 | तुलसीदास के अन्य परवर्ती कवि |
9 | महारानी विक्टोरिया के शासनकाल में हिंदुस्तान |
10 | कम्पनी के शासनकाल में हिंदुस्तान |
11 | 18 वीं शताब्दी |
12 | विविध |
जॉर्ज ग्रियर्सन ने प्रथम अध्याय चारणकाल के अन्तर्गत 9 कवियों उल्लेख का किया है।
1. पुष्प / पुंड 2. खुमाण 3. केदार 4. कुमारपाल 5. अनन्यदास 6. चंद ( चंद बरदाई ) 7. जगनिक 8. जोधराज 9. शांरगधर
- आचार्य शुक्ल ने इस ग्रंथ को ‘बड़ा वृत्त संग्रह’ कहा है।
- इस ग्रंथ को डॉ. किशोरीलाल गुप्त ने “सच्चे अर्थों में लिखा गया हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास ग्रंथ” कहा है।
- डॉ. किशोरीलाल गुप्त ने 1857 में इस ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद “हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास” नाम से किया जिसका प्रकाशन ‘हिंदी प्रचारक पुस्तकालय, वाराणासी’ ने किया।
- इस ग्रंथ में प्रथम बार भक्तिकाल को हिन्दी का स्वर्णयुग कहा गया है। इस ग्रंथ में प्रथम बार ‘रीतिकाव्य‘ शीर्षक का उल्लेख मिलता है।
द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान के कुछ दोष :-
- साहित्य के इतिहास लेखन में वैज्ञानिक कालक्रम एवं नामकरण का अभाव।
- अध्यायों की संख्या अधिक होने के कारण काल विभाजन न कहकर ‘काल शीर्षक’ मात्र कहा जाता है।
- इस ग्रंथ में 14 वीं शताब्दी का उल्लेख नहीं मिलता है।
6. मिश्रबंधु
साहित्यिक ग्रंथ – मिश्रबंधु विनोद
प्रकाशन –
1913 | भाग – 1, 2 व 3 |
1934 | भाग – 4 |
- मिश्रबंध तीन भाई थे – गणेशबिहारी मिश्र, श्यामबिहारी मिश्र, शुकदेवबिहारी मिश्र
- इस ग्रंथ में ‘इतिवृत्तात्मक तथा तुलनात्मक पद्धति‘ से कवियों का वर्णन किया गया है।
- यह ग्रंथ परम्परागत रूप से लिखा गया हिन्दी का प्रथम इतिहास ग्रंथ कहलाता है।
- मिश्रबंधुओं ने अपभ्रंश को भी हिन्दी साहित्य के इतिहास में शामिल किया।
- इस ग्रंथ में 4591 कवियों का उल्लेख है।
- आ. शुक्ल ने मिश्रबंधुओं को “परिश्रमी संकलनकर्ता“ कहा है।
- इस ग्रंथ को आचार्य शुक्ल ने “बड़ा भारी वृत संग्रह” कहा है।
- इस ग्रंथ को आचार्य रामचंद्र शुक्ल रचित “हिन्दी साहित्य का इतिहास“ ग्रंथ की पूर्व पीठिका कहा जाता है।
- इस ग्रंथ में मिश्रबंधुओं ने काल विभाजन करते हुए हिन्दी साहित्य के इतिहास को पाँच भागों में विभक्त किया है।
1. आरंभिक काल | (क) पूर्वारम्भिक काल (700-1343 वि.) |
(ख) उत्तरारम्भिक काल (1344-1444 वि.) | |
2. माध्यमिक काल | (क) पूर्व माध्यमिक काल (1445-1560 वि.) |
(ख) प्रौढ़ माध्यमिक काल (1561-1680 वि.) | |
3. अलंकृत काल | (क) पूर्वालंकृत काल (1681-1790 वि.) |
(ख) उत्तरालंकृत काल (1791-1899 वि.) | |
4. परिवर्तन काल | 1890-1925 वि. |
5. वर्तमान काल | 1926 वि. से अब तक |
- मिश्रबंधुओं ने रीतिकाल को अलंकृत काल कहा है तथा उसकी समयावधि ( 1681 से 1889 ) बतायी है।
- मिश्रबंधुओं ने ‘हिन्दी नवरत्न‘ नाम से 1910 में एक रचना लिखी जिसमें देव और बिहारी विवाद को जन्म दिया। जो आगे 10 वर्षों तक चलता रहा।
दोष :-
- नामकरण एक ही पद्धति पर नहीं।
- अपभ्रंश को हिन्दी साहित्य में स्थान दे देना।
7. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
साहित्यिक ग्रंथ – हिन्दी साहित्य का इतिहास (1929 ई.)
- इस ग्रंथ का प्रथम परिचय नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा संपादित “हिन्दी शब्द सागर” की भूमिका में जनवरी 1929 में “हिन्दी साहित्य का विकास“ नाम से मिलता है।
- 1929 के मध्य में ही एक स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में इस ग्रंथ का प्रकाशन हुआ।
- हिन्दी शब्द सागर के संपादक मण्डल में बाबू श्यामसुंदर दास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल तथा डॉ. रामकुमार वर्मा का प्रमुख स्थान है।
- आ. रामचंद्र शुक्ल 1905 में हिन्दी शब्द सागर के संपादन कार्य से जुड़े। ( काशी नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना – 1893 में हुई। )
- 1940 में शुक्ल जी द्वारा रचित इतिहास ग्रंथ का पुनः प्रकाशन संशोधित एवं परिवर्धित रूप में हुआ।
- आ. शुक्ल ने विधेयवादी पद्धति पर फ्रेंच विद्वान तेन का अनुसरण करते हुए इतिहास लेखन किया।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने दोहरे नामकरण की प्रवृत्ति काम में ली अर्थात् उन्होंने काल विभाजन करते प्रत्येक काल के दो नाम बताए।
1. आदिकाल या वीरगाथा काल | 1050 से 1375 वि.सं. |
2. भक्तिकाल या पूर्व मध्यकाल 1375 से 1700 वि.सं. | 1375 से 1700 वि.सं. |
3. रीतिकाल या उत्तर मध्यकाल | 1700 से 1900 वि.सं. |
4. आधुनिक काल या गद्य काल | 1900 से…………. |
विशेष :- आचार्य शुक्ल ने वीरगाथाकाल को दो भागों में विभाजित किया है।
1. अपभ्रंश या प्राकृताभास काल | 1050 – 1200 वि.सं. |
2. वीरगाथा काल | 1200 – 1375 वि.सं. |
- आचार्य शुक्ल ने अपभ्रंश को प्राकृताभास काल कहा है।
- आचार्य शुक्ल ने प्रथम कालखण्ड को वीरगाथाकाल नाम देने के पीछे 12 ग्रंथों को आधार माना। जो इस प्रकार है –
साहित्यिक ग्रंथ | रचनाकार |
1. खुमाण रासो | दलपति विजय |
2. परमाल रासो | जगनिक |
3. बीसलदेव रासो | नरपति नाल्ह |
4. विजयपाल रासो | नलसिंह |
5. हम्मीर रासो | जोधराज / शारंगधर |
6. पृथ्वीराज रासो | चंदबरदाई |
7. कीर्तिलता | विद्यापति |
8. कीर्तिपताका | विद्यापति |
9. पदावली | विद्यापति |
10. जयमंयक जसचंद्रिका | मधुकर भट्ट |
11. जयचंद प्रकाश | भट्ट केदार |
12. अमीर खुसरो की पहेलियां / मुकरियां | अमीर खुसरो |
- वीरगाथाकाल नाम देने के पीछे जिन 12 ग्रंथों को आधार बनाया गया है, उनमें से आचार्य शुक्ल ने किन-किन रचनाओं को अपभ्रंश की कोटि में रखा है ?
अपभ्रंश की कोटि में – कीकी हवि
कीर्तिलता, कीर्तिपताका, हम्मीर रासो, विजयपाल रासो
- शेष 8 रचनाओं को देशभाषा में रखा गया है।
- इन 12 रचनाओं में से जयमंयक जसचंद्रिका तथा जयचंद प्रकाश अनुपलब्ध है। इनका उल्लेख बीकानेर के कवि दयालदास खीची रचित ‘राठौड़ा री ख्यात‘ रचना में मिलता है।
- आचार्य शुक्ल ने अपने ग्रंथ में 1000 कवियों ( रचनाकारों ) का उल्लेख किया है।
- इस ग्रंथ की रचना उन्होंने एक इतिहासकार की तरह न करके समालोचक दृष्टि से की है।
- इस ग्रंथ की रचना में शुक्ल जी ने केदारनाथ पाठक का विशेष आभार व्यक्त किया है।
- अपने ग्रंथ में शुक्ल जी ‘दास जी’ शब्द का प्रयोग ‘भीखारीदास’ के लिए करते है।
देसिल बयना सब जन मिट्ठा। ते तेसहु जपहु अवहट्ठा॥
– विद्यापति (कीर्तिलता के सम्बन्ध में)
शुक्ल जी द्वारा रचित अन्य ग्रंथ : –
- रसमीमांसा – आलोचनात्मक ग्रंथ
- भ्रमरगीत सार का संपादन
- चिंतामणि ( निबंध संग्रह – 4 भाग में )
- जायसी, तुलसी और सूरदास पर त्रिवेणी नाम से निबंध लिखे हैं।
- पद्मावत के 57 खण्डों का नामकरण किया।
8. डॉ. रामकुमार वर्मा
साहित्यिक ग्रंथ – हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास (1938 ई.)
इस ग्रंथ में काल विभाजन करते हुए डॉ. रामकुमार वर्मा ने हिन्दी के प्रथम कालखण्ड को ‘सधि – चारणकाल’ कहा है।
1. संधि काल | 750 – 1000 वि.सं. |
चारण काल | 1000 – 1375 वि.सं. |
2 भक्तिकाल | 1375 – 1700 वि.सं |
3. रीतिकाल | 1700 – 1900 वि.सं. |
4. आधुनिक काल | 1900 वि.सं. से……….. |
डॉ. रामकुमार वर्मा ने अपने ग्रंथ को सात प्रकरण में विभक्त किया है। जो निम्न प्रकार है –
क्र.सं. | प्रकरण का नाम |
1. | संधिकाल |
2. | चारण काल |
3. | भक्तिकाल की अनुक्रमणिका |
4. | भक्ति काव्य |
5. | राम काव्य |
6. | कृष्ण काव्य |
7. | प्रेम काव्य |
- 693 ई. से 1693 ई. समयावधि
- अपने इतिहास ग्रंथ में 693 ई. से 1693 ई. तक अर्थात् संधिकाल से लेकर भक्तिकाल तक की (1000 वर्ष ) की अवधि को ही लिया।
- डॉ. रामकुमार वर्मा ने स्वयंभू को पहला कवि माना ( समय 693 ई. )
9. डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेद्वी
डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ और उनके प्रकाशन वर्ष निम्न प्रकार है –
साहित्यिक ग्रंथ | प्रकाशन वर्ष |
1. हिन्दी साहित्य की भूमिका | 1940 |
2. हिन्दी साहित्य : उद्भव और विकास | 1452 |
3. हिन्दी साहित्य का आदिकाल | 1952/1953 |
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इतिहास लेखन में समाजशास्त्रीय पद्धति का प्रयोग किया है।
1. आदिकाल | 1000 से 1400 ई. |
2. भक्तिकाल | 1400 से 1600 ई. |
3. रीतिकाल | 1600 से 1800 ई. |
4 आधुनिक काल | 1800 से 1952 ई. |
हिन्दी साहित्य की भूमिका में साहित्य के विभिन्न स्वरूपों का विकास विराट रूप में वर्णन 10 अध्यायों में किया है। जो निम्न प्रकार है –
क्र.सं. | अध्याय का नाम |
1. | हिन्दी साहित्य |
2. | भारतीय चिन्तन का स्वाभाविक विकास |
3. | संतमत |
4. | भक्तों की परम्परा |
5. | योग मार्ग और संत मत |
6. | सगुण मतवाद |
7. | मध्ययुग के सतों का स्वाभाविक विकास |
8. | भक्तिकाल के प्रमुख कवियों का व्यक्तित्व |
9. | रीतिकाल |
10. | उपसंहार |
10. डॉ. नगेन्द्र
- डॉ. नगेन्द्र ने स्वयं का कोई साहित्य इतिहास ग्रंथ लेखन नहीं किया। केवल एक पुस्तक के रूप में सभी प्रमुख साहित्यकारों का सार एकत्रित किया है।
- डॉ. नगेंद्र ने काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा सम्पादित “हिंदी साहित्य का वृहद् इतिहास” (16 खण्ड ) में से 3 खण्डों का सम्पादन किया।”
भाग – 6 | रीतिकाल : रीतिबद्ध |
भाग – 10 | उत्कर्ष काल : काव्य (छायावाद) |
भाग – 15 | आंतर भारती हिंदी साहित्य – महापंडित राहुल सांकृत्यायन के साथ मिलकर |
- इस ग्रंथ के प्रथम भाग का शीर्षक “हिन्दी साहित्य की पीठिका“ है।
- अंतिम 16 वाँ खण्ड – हिन्दी का लोक साहित्य ( संपादक – डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय व राहुल सांकृत्यायन )
1. आदिकाल | 7 वीं शताब्दी से 14 वीं शताब्दी के मध्य तक |
2. भक्तिकाल | 14 वीं शताब्दी के मध्य से 17 वीं शताब्दी के मध्य तक |
3. रीतिकाल | 3 रीतिकाल 17 वीं शताब्दी के मध्य से 19 वीं शताब्दी के मध्य तक |
4. आधुनिक काल | 19 वीं शताब्दी के मध्य से …………. |
1. पुनर्जागरण काल / भारतेन्दु युग | 1857 ई. से 1900 ई. |
2. जागरण सुधार काल / द्विवेदी युग | 1900 से 1918 ई. |
3. छायावाद | 1918 से 1938 ई. |
4. छायावादोत्तर काव्य | (1) प्रगति प्रयोग काल – 1938 से 1953 ई. (ii) नवलेखन 1953 से ……… |
डॉ. नगेन्द्र को “रससिद्धान्त” (विवेचन ) पर 1965 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
क्र.सं. | ग्रंथ का नाम | रचनाकार |
1. | हिन्दी कोविद रत्नमाला ( 2 खण्ड 1. 1909 2. 1914 ) | डॉ. श्यामसुन्दर दास |
2. | हिन्दी साहित्य का इतिहास दर्शन | डॉ. नलिन विलोचन शर्मा |
3. | हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास | डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी |
4. | हिन्दी साहित्य | डॉ. धीरेन्द्र वर्मा |
5. | हिन्दी काव्यधारा | महापण्डित राहुल सांकृत्यायन |
6. | हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास 2 भाग – भाग 1 – 1964 ई. व भाग 2 – 1965 ई. | गणपति चन्द्र गुप्त |
7. | हिन्दी साहित्य का मनोवैज्ञानिक अध्ययन | डॉ. देवराज उपाध्याय |
8. | हिन्दी भाषा और साहित्य का इतिहास | आचार्य चतुरसेन शास्त्री |
9. | हिन्दी साहित्य का अतीत | आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र |
10. | हिन्दी साहित्य : बीसवीं शताब्दी | आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ( हिन्दी का सौष्ठववादी आलोचक ) |
11. | हिन्दी भाषा का उद्भव और विकास | डॉ. उदयनारायण तिवारी |
12. | हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास | डॉ. बच्चन सिंह |
13. | मॉडर्न हिन्दी लिट्रेचर | डॉ. इंद्रनाथ मदान |
14. | हिन्दी साहित्य का आधा इतिहास (2003) | सुमन राजे |
15. | हिन्दी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास | आचार्य सूर्यकान्त शास्त्री |
16. | हिन्दी साहित्य का ओझल नारी इतिहास | नीरजा माधव प्रकाशन 2013 |
17. | हिन्दी साहित्य का मौखिक इतिहास | नीलाभ |
18. | हिन्दी साहित्य विमर्श | पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी |
19. | हिन्दी साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास | डॉ. वासुदेव सिंह |
20. | हिन्दी साहित्य की कहानी | डॉ. प्रभाकर माचवे |
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